जमुई से अमित कु सविता की रिपोर्ट
जमुई जिला अधिकारी अवनीश कुमार सिंह रविवार को भगवान महावीर स्वामी की जन्मस्थली जन्मकल्याणक पहुंचे। वे वहां जैन धर्म के अनुसार 24 वें तीर्थंकर भगवान महावीर स्वामी की पूजा अर्चना की और उनके चरणों में शीश झुकाकर जमुई समेत राज्य और देश के कल्याण के लिए उनसे वर मांगा। श्री सिंह पूजा – अर्चना के उपरांत जन्म कल्याणक परिसर में जिला प्रशासन के सौजन्य से स्थापित आउटडोर एलइडी स्क्रीन का फीता काटकर उद्घाटन किया।
डीएम ने मौके पर कहा कि भगवान महावीर स्वामी की जन्मस्थली जन्मकल्याणक का तेजी से विकास करना उनकी सर्वोच्च प्राथमिकता है।
उन्होंने इस जाने – माने धार्मिक स्थल को विश्व के मानचित्र पर पर्यटन केंद्र के रूप में अंकित किए जाने के लिए हर संभव प्रयास किए जाने का जिक्र करते हुए कहा कि एलइडी के जरिए भगवान महावीर स्वामी के संदेशों को प्रसारित किया जाएगा और आगंतुक इसके माध्यम से प्राकृतिक छटा से भी रूबरू हो सकेंगे। उन्होंने आउटडोर एलइडी से जन्मकल्याणक के इतिहास का प्रदर्शन किए जाने की जानकारी देते हुए कहा कि तीर्थ यात्री समेत अन्य जन किताबों में उल्लेखित बातों को जानकर अपना क्षमतावर्धन कर सकेंगे।
डीएम ने कहा कि लछुआड़ भगवान महावीर स्वामी की जन्मकल्याणक
दीक्षा कल्याणक और चमन कल्याणक लिए जाना जाता है। भगवान इसी पावन धरा पर गर्भ में आए , यहीं उनका जन्म हुआ और इसी भूमि पर उन्होंने दीक्षा ग्रहण की। उन्होंने दीक्षा ग्रहण करने के उपरांत पहली रात कुमार गांव में बिताया , जो कई मायनों में महत्व रखता है। जिलाधिकारी ने कहा कि वे भगवान महावीर स्वामी जी का संदेश ” अहिंसा परम धर्म ” से अभिभूत होकर इसे जन – जन का कर्तव्य बनाना चाहते हैं ताकि समाज में अमन – चैन कायम रह सके। उन्होंने जन्मकल्याणक की तर्ज पर काकन और कुमार धर्मस्थल का भी विकास किए जाने का ऐलान करते हुए कहा कि यहां भी आगन्तुकों को बेहतर सुविधा मुहैया कराई जाएगी।
जिलाधिकारी ने इसी संदर्भ में बताया कि देश में जैन धर्म को मानने वाले महज 02 प्रतिशत लोग हैं लेकिन भारतीय अर्थव्यवस्था पर इनका 40 प्रतिशत से अधिक कब्जा है।
सर्वविदित है कि बिहार प्रान्त के जमुई जिले के कण – कण में इतिहास की कथाएं सिसक रही हैं। काकन्दी की धरती फोड़कर निकलती हुई पंक्तिबद्ध कमरों की दीवारें जैन धर्म के नवें तीर्थंकर की जन्मभूमि की गौरवगाथा कह रही है तो इनपैगढ़ के ध्वंसावशेष पालवंश के अन्तिम दिनों की महिमा बता रहे हैं। गिद्धौर का वर्तमान गढ़ चन्देलवंश के अतीत का वैभव सुना रहा है। उसी तरह नौलखागढ़ , घोस , मन्जोष , पिरहण्डा आदि स्थानों के टीले इतिहास – पुरातत्त्व को गर्भ में समेटे चुपचाप पड़े हैं। यह स्थान बार – बार कुछ समझने , कुछ लिखने का मौन निमन्त्रण देता रहा है। इस जमुई नगर का सौभाग्य है कि यहीं भगवान महावीर का भूअवतरण भी हुआ और इसी धरती पर प्रवाहमान नदी के तीर पर उन्हें ज्ञान भी मिला।
जन्म के उपरान्त तीस वर्षों तक भगवान महावीर ने गृहवास किया। माता – पिता के स्वर्गारोहण के पश्चात 30 वर्ष की अवस्था में महावीर स्वामी ने भवबन्ध तोड़ कर ‘केवल ज्ञान’ प्राप्ति हेतु कुण्ड ग्राम का परित्याग कर दिया। वहां से चलकर वह क्षत्रिय कुण्ड ग्राम से उत्तर – पश्चिम दिशा में नायखण्ड वन पहुँचे , वहां बहुशाल चैत्य के नीचे उन्होंने दीक्षा प्राप्त की। इसे शालवन उद्यान भी कहा जाता है। यहां से भगवान महावीर ने जो यात्रा आरम्भ की और जिन – जिन मार्गों से वे गुजरे , उन सभी मार्गों के नाम जमुई जिले में कुछ उच्चारण भेद के साथ मिलते हैं जो जग जाहिर है।
भगवान महावीर गृहत्याग करने के बाद इसी क्षत्रिय कुण्ड ग्राम से उत्तर – पश्चिम दिशा में नाय खण्डवन (ज्ञात खण्डवन) में पधारे थे। यहीं से अविलम्ब भगवान ने साधना मुद्रा में केवलज्ञान प्राप्ति हेतु बारह वर्षों की कठिन यात्रा आरम्भ की और दिन का मुहूर्त शेष रहते हुए कमरि अथवा कुर्मार (कुमार) ग्राम पहुँचे। कल्पसूत्र एवं आवश्यक चूर्णि , प्रथम भाग में उल्लेख है कि कुमार पहुँचने के दो मार्ग थे : एक स्थल और दूसरा जल मार्ग। महावीर स्थल मार्ग से ही गए। दूसरे दिन वह कुमार से चलकर कोल्लाग सन्निवेश पहुँचे। कोल्लाग से दूसरे दिन मौराक सन्निवेश आये जहाँ दुईज्जन्तक नामक ऋषि के आश्रम में कुलपति के आग्रह पर पर्णकुटी में रहने लगे। मौराक से वह अथ्थिय अथवा अस्थिक ग्राम आये।
जमुई में जैनसंघडीह नामक एक ग्राम सिकन्दरा अंचल में है। यह ग्राम इसका प्रमाण उपस्थित करता है कि यहाँ कभी जैनों का संघ रहा होगा। भगवान महावीर की भाषा ‘अर्द्धमागधी’ थी जो मगध क्षेत्र की भाषा थी। ज्ञातव्य है कि जमुई प्रदेश मगध क्षेत्र के अन्तर्गत आता है इसलिए भगवान महावीर स्वामी की जन्मस्थली और भी पावन है।