स्वामी सत्यप्रकाश जी महाराज कहते हैं।
आज के इस भागदौड़ भरी जिंदगी में, आधुनिक युग में व्यक्ति के पास सब कुछ होते हुवे भी तनावग्रस्त हैं, मन को शांति सुकून नहीं हैं, व्यक्ति चाहते हुवे भी भौतिक साधनों में उन्हें शांति नहीं मिलती। व्यक्ति पैसा, गाड़ी, बंगला, फैक्ट्री सब कुछ हासिल करने के बाद भी वो खालीपन महसूस करता हैं, मन बैचैन हैं। हाँ यह सच हैं की संसार के साधनों, संसाधनों व सुविधाओं से इच्छा की तो पूर्ति हो सकती हैं लेकिन शांति नहीं मिलती हैं।
आखिर शांति कहाँ?
शांति हमारे भीतर छिपी हुईं हैं, उस शांति को हमें भीतर से जागृत करना होगा। हमारे जीवन की दिनचर्या सुव्यवस्थित हो, दैनिक दिनचर्या में योग, प्राणायाम, व ध्यान का होना जरूरी हैं। आध्यात्मिक ऊर्जा का हम नित्य अनुभव करें। 24 घंटे में ऐसा समय निकालें व खुद से मुलाक़ात करें। समय का सदुपयोग हो और आलस्य से अपने आप को दूर रखें क्यूंकि आलस्य व्यक्ति का सबसे बड़ा शत्रु होता हैं। और जीवन में हम किसी पर निर्भर नहीं बने, न किसी से उम्मीद न किसी से कुछ अपेक्षा… जितना खुद कर्म कर सकते है उतना करने का प्रयास करें। हमेशा वर्तमान में जिए। नित्य स्वाध्याय करें, सकारात्मक सोच व उच्च विचार रखें।
सदा आनंदित रहें, मुस्कुराते रहें…व्यस्त रहें, मस्त रहें… लेकिन अस्तव्यस्त न रहें।